नवरात्रा के चौथे दिन की मां कूष्मांडा की पूजा
देवियों के मन्दिरों मची हुई दर्शनार्थियों की धूम
कामां। शारदीय नवरात्रि का पावन पर्व चल रहा है। सनातन धर्म में नवरात्रि पर शक्ति की साधना का बहुत अधिक महत्व होता है। नवरात्रि के चैथे दिन देवी दुर्गा के कूष्मांडा स्वरूप की पूजा का विधान है। जिनकी साधना से साधक के जीवन से जुड़े सभी कष्ट दूर और कामनाएं पूरी होती हैं। इनका निवास सूर्य मंडल के भीतर के लोक में स्थित है। सूर्य लोक में निवास कर सकने की क्षमता और शक्ति केवल इन्हीं में है। माँ कूष्मांडा सृष्टि की आदि-स्वरूपा, आदि शक्ति हैं। अपनी मंद,हल्की हंसी द्वारा अण्ड अर्थात ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्माण्डा देवी के नाम से अभिहित किया गया है। जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था,चारों ओर अन्धकार ही अन्धकार परिव्याप्त था, तब इन्हीं देवी ने अपने ईषत हास्य से ब्रह्माण्ड की रचना की थी। इनके पूर्व ब्रह्माण्ड का अस्तित्व नहीं था।
प.सेवाअधिकारी संजय लवानिया ने मां के स्वरूप का वर्णन करते हुए बताया कि इनके शरीर की कांति और प्रभा भी सूर्य के समान ही है, इनके तेज की तुलना इन्हीं से की जा सकती है। अन्य कोई भी देवी-देवता इनके तेज और प्रभाव की समता नहीं कर सकते। इन्हीं के तेज और प्रकाश से दसों दिशाएं प्रकाशित हो रहीं हैं। ब्रह्माण्ड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में स्थित तेज इन्हीं की छाया है। इनकीआठ भुजाएं हैं,अतः ये अष्टभुजादेवी के नाम से भी जानी जाती हैं। इनके सात हाथों में क्रमशः कमण्डलु,धनुष,बाण,कमलपुष्प,अमृतपूर्ण कलश ,चक्र तथा गदा हैं। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है एवं इनका वाहन सिंह है। नवरात्रा के चैथे दिन बुधवार को देवी कूष्मांडा की पूजा कुमकुम,मौली, अक्षत,पान के पत्ते,केसर और श्रृंगार आदि श्रद्धापूर्वक की गई।